प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य अध्ययन (प्राचीन भारतीय इतिहास) - सिन्धु घाटी की सभ्यता - भाग - १
प्राचीन भारतीय इतिहास: सिन्धु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization)
सिन्धु घाटी की सभ्यता का उद्धभव काल में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर
क्षेत्र में हुआ था, जो वर्तमान में।भारत, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ
क्षेत्रों में अवस्थित है। इस काल की सभी संस्कृतियों में सैन्धव सभ्यता सबसे
विकसित, विस्तृत और उन्नत अवस्था में थी। इसे हड़प्पा सभ्यता (harappan
civilization ) भी कहते है क्योंकि सर्वप्रथम 1921 ई. में हड़प्पा नामक स्थान से
ही इस संस्कृति के सम्बन्ध में। जानकारी मिली थी। सैन्धव सभ्यता अनुकूलता के
मध्य उत्पन्न हुई थी जिसका ज्ञान उत्खनन एवं अनुसन्धान द्धारा होता है। सैन्धव
सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, क्योंकि इसके पुरातात्विक अवशेषों से परिवहन,
व्यापार, तकनीकी, उत्पादन, एवं नियोजित नगर व्यवस्था के तत्व प्राप्त होते हैं।
सैन्धव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार (Geographic Expansion of Indus Valley Civilization)
सैन्धव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में कश्मीर (मांडा) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पश्चिम में सुतकागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था।
1. आरंभिक हड़प्पा सभ्यता (3500 ई. पू.
- 2350 ई. पू.)
2. परिपक्व हड़प्पा सभ्यता
(2350 ई. पू. - 1750 ई. पू.)
3. उत्तर हड़प्पा सभ्यता। ( 1750 ई. पू. से आगे)
सैन्धव सभ्यता का स्वरुप (Perspective of Indus Valley Civilization)
सैन्धव सभ्यता एक विस्तृत भू- भाग पर फैली थी जिसमे सिंध, पंजाब था घग्घर नदी के क्षेत्र प्रमुख थे।अधिकांश सैन्धव बस्तियां इसी क्षेत्र में थी।इन क्षेत्रों में समरूपता पाई जाती है। सभ्यता का स्वरुप पूर्णतः विकसित व नगरीय थी। व्यवसाय, परिवहन के साधन, पशुपालन, तकनीकी तथा उत्पादन प्रडाली इस सभ्यता का उन्नतता के परिचायक है।
आरंभिक सैन्धव सभ्यता के साक्ष्य (Evidences of Early Indus Civilization)
स्थान |
पुरातात्विक साक्ष्य |
कोटदीजी |
काँसे की चूड़ियां, बाँडाग्र, नगर के चारो ओर अति विशाल सुरक्षात्मक दीवार के अवशेष |
रहमानढेरी |
आयताकार नगर एवं नियोजित ढंग से बने मकान, सड़के, नालियों के अवशेष मुहरे |
मेहरगढ़ |
लाजवर्द मणि |
रान्दाघुंडई |
चित्रयुक्त बर्तन, कुबड़ वाले बैल, चित्र वाले बर्तन। |
सैन्धव सभ्यता का नगर नियोजन (Town Planning of Indus Valley Civilization)
सैन्धव सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसका ज्ञान इसके पुरातात्विक अवशेषों था अनुसन्धान से होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन। प्रथम भाग में ऊँचा दुर्ग निर्मित था जिसमे शाशक वर्ग निवास करता था तथा दुसरे भाग में सामान्य जनता का निवास स्थान था। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और कालीबंगा की सैन्धव बस्तियों की नगर योजना में कुछ समानताये है।
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सैन्धव सभ्यता का अध्भुत निर्माण है ईंटो से निर्मित इस विशाल ईमारत की लंबाई –चौड़ाई 12 मी० x 7 मी० और गहराई 3 मी० है।इसके दोनों सिरो से नीचे जाने के लिए सीढ़ियां है, स्नानागार के बगल में कपडे बदलने के कक्ष है। इसका फर्श पकी ईंटो से निर्मित है, स्नानागार में पानी बड़े कुए से आता था तथा पानी निकलने के लिए नाली थी। स्नानागार के चारो तरफ मंडप और कक्ष बने थे जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में स्नान के लिये किया जाता था।
मोहनजोदड़ो का विशाल अन्नागार 45.71 मी० लंबा और 15.23 मी० चौड़ा था। हड़प्पा से भी अन्नागार के साक्ष्य मिले है, जो संख्या में छः है और ईंटो के मजबूत चबूतरों पर स्थित है। इन अन्नागारों में अधिशेष (Surplus) अन्न का भण्डारण किया जाता था।
महत्वपूर्ण नगर (Important Towns)
मोहनजोदड़ो (Mohenjo-daro): जिसका सिंधी भाषा में आशय मृतको का टीला होता है, सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित सैन्धव सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ से वृहत स्न्नानागार, अन्नागार के अवशेष, पुरोहित कि मूर्ती इत्यादि मिले है।
हड़प्पा (Harappa): यह पहला स्थान था, जहाँ से सैन्धव सभ्यता के सम्बन्ध में प्रथम जानकारी मिली।यह पाकिस्तान में पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। अर्ध-औद्योगिक नगर’ कहा है।
चन्हूदड़ो (Chanhu-daro): यह सैन्धव नगर मोहनजोदड़ो से किलोमीटर दक्षिण में सिंध प्रान्त में ही स्थित था। इसकी खोज 1934 ई० में ऐन, जी, मजूमदार ने की तथा 1935 में मैके द्धारा यहाँ उत्खनन कराया गया। यहाँ के मनके बनाने का कारखाना, बटखरे।तथा कुछ उच्च कोटि की मुहरे मिली है। यही एक मात्र ऐसा सैन्धव स्थल है जो दुर्गीकृत नहीं है।
लोथल।(Lothal): यह नगर गुजरात में खम्भात की खाड़ी में भोगवा नदी के किनारे स्तिथ है। जो महत्वपूर्ण सैन्धव स्थल तथा बंदरगाह नगर भी था। यहाँ से गोदी (Duckyard )के साक्ष्य मिले है लोथल में नगर का दो भागो में विभाजन होकर एक ही रक्षा प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया है।
कालीबंगा (Kalibangan): कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ होता है काली रंग की चूड़ियां। यह सैन्धव नगर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्तिथ है यहाँ के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटो द्धारा हुआ था तथा यहाँ से अलंकृत ईंटो के साक्ष्य मिले है। जुते खेत, अग्निवेदिका, सेलखड़ी तथा मिटटी की मुहरे एवम मृदभांड यहाँ उत्त्खनन से प्राप्त हुए है।
सुत्कागेंडोर (Sutkagen dor): सैन्धव सभ्यता का यह सुदूर पश्चिमी स्थल पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्तिथ है।यह सैन्धव सभ्यता का पश्चिम में अंतिम बिंदु है। यहाँ से एक किले का साक्ष्य मिला है, जिसके चारो ओर रक्षा प्राचीर निर्मित थी।
बनावली (Banawali): हरियाणा के हिसार जिले में स्तिथ इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन, दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले है। यहाँ से अग्निवेदिया, लाजवर्दमनी, मनके, हल की आकृति, तिल सरसो का ढेर, अच्छे किस्म के जो, नालियों की विशिस्टता, तांबे के वाणाग्र आदि मिले है।
सैंधव सभ्यता के प्रमुख स्थल (Main Sites of Indus Valley Civilization)
स्थल |
नदियों के नाम |
उत्त्खनन का वर्ष |
उत्तखननकर्ता |
वर्तमान स्तिथि |
हड़प्पा | रावी | 1921 | दयाराम साहनी और माधोस्वरूप वत्स | पश्चिम पंजाब का मांटमोगरी जिला (पाकिस्तान) |
मोहनजोदड़ो |
सिन्धु |
1922 |
राखलदास बनर्जी |
सिंध प्रान्त का लरकाना जिला (पाकिस्तान) |
चन्हूदड़ो |
सिन्धु |
1931 |
गोपाल मजूमदार |
सिंध प्रान्त(पाकिस्तान) |
कालीबंगा |
घग्घर |
1953 |
बी.बी.लाल और बी.के. थापर |
राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला (भारत) |
कोटदीजी |
सिन्धु |
1953 |
फजल अहमद |
सिंध प्रान्त का खैरपुर (पाकिस्तान) |
रंगपुर |
मादर |
1953-54 |
रंगनाथ राव |
गुजरात का काठियावाड क्षेत्र (भारत) |
रोपड़ |
सतलज |
1953-56 |
यज्ञदत्त शर्मा |
पंजाब का रोपड़ जिला (भारत) |
लोथल |
भोगवा |
1955 1962 |
रंगनाथ राव |
गुजरात का अहमदाबाद जिला (भारत) |
आलमगीरपुर |
हिंडन |
1958 |
यज्ञदत्त शर्मा |
उत्तर प्रदेश का मेरठ जिला (भारत) |
बनावली |
रंगोई |
1974 |
रविन्द्रनाथ विष्ट |
हरियाणा का हिसार जिला (भारत) |
धौलावीरा |
- |
1990-91 |
रविन्द्रनाथ विष्ट |
गुजरात का कच्छ जिला (भारत) |
सैन्धवकालीन आर्थिक व्यवस्था
सैंधव नगरो के उत्कर्ष का प्रमुख कारण उन्नत कृषि तथा व्यापार था। सैन्धव निवासियों का मुख्य कार्य कृषि और विदेशी व्यापार था जिसके कारण सैन्धव अर्थव्यवस्था उन्नत अवस्था में थी।
सैन्धव नगरों में कृषि पदार्थो की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रो से होती थी, इसलिए अन्नागार नदियों के किनारे बनाये गए थे। कालीबंगा से प्राप्त जुटे खेत के साक्ष्य, धौलावीरा के जलाशय, रेशेदार जाऊ गोसीपिउस।आवोसियस जाति का संकर प्रजाति का कपास, लोथल, रंगपुर से धान की भूसी के साक्ष्य, बनावली से मिले मिटटी के हल के साक्ष्य आदि के आधार पर यह कहा जाता सकता है कि सैन्धवकालीन कृषि उस समय के अनुसार उन्नत अवस्था में थी तथा सैंधवकालीन अर्थव्यवस्था का मूल आधार थी।
कृषि उन्नत के साथ ही पशुपालन का भी विकास हुआ था। कृषि उत्पादन एवं व्यापार तथा परिवहन में पशुओ की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। कूबड़ वाले बैल की हड्डियां शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। इसकी व्यावसायिक महत्ता ने ही इसे उस काल में पूज्य बना दिया। इसके आलावा भेंड़, बकरी, हाथी, भैंस, गाय, गधे आदि पशुओं के होने का अनुमान है।
व्यापार और परिवहन के उद्देश्य से ही नगरो की स्थापना नदियों के किनारे की गई थी, जिससे व्यापारिक उत्पाद सुगमता से एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजा जा सके। लोथल से प्राप्त गोदी के साक्ष्य से स्पष्ट है कि सैन्धववासी विदेशी व्यापार करते थे। उत्त्खनन से प्राप्त मुद्रांको और मुहरो में विशाल नावो।की आकृतियाँ तथा बैलगाड़ी के खिलौने से स्पष्ट है कि इस काल में परिवहन उन्नत अवस्था में थी। चौड़ी सड़को का निर्माण परिवहन के उद्देश्य से किया गया था।
आतंरिक और बाह्य व्यापार, दोनों उन्नत स्तिथि में थे। मध्य एशिया, फारस कि खाड़ी, ईरान, बहरीन द्वीप, मेसोपोटामिया, मिस्र आदि के साथ इनके व्यावपारिक सम्बन्ध थे, जिसके साक्ष्य के रूप में लोथल से प्राप्त मुहरे हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मेसोपोटामिया कि मुहरे एवं हड़प्पाई मुहरों के साक्ष्य का मेसोपोटामिया के नगरों से मिलना तात्कालिक द्विपक्षीय व्यापार कि पुष्टि करते हैं।
सैन्धव निवासियों द्धारा आयातित वस्तुएं (Goods Imported of Harappan people)
वस्तु |
स्थान |
वस्तु |
स्थान |
सोना |
अफगानिस्तान, ईरान, द.भारत |
तांबा |
खेतड़ी (राजस्थान), बलूचिस्तान |
टिन |
ईरान, अफगानिस्तान |
कीमती पत्थर |
बलूचिस्तान, राजस्थान |
चांदी |
ईरान, मेसोपोटामिया |
फिरोजा |
ईरान |
लाजवर्द मणि |
बदख्शां |
सेलखड़ी |
ईरान |
सैंधव सभ्यता में धार्मिक जीवन (Religious Life is Indus Valley Civilization)
सैंधव सभ्यता से बड़ी संख्या में प्राप्त स्त्री मृण्मूर्तियों तथा मुहरों के ऊपर नारी आकृतियों के अंकन के कारण सैंधव समाज को मातृदेवी का उपासक कहा जा सकता है। हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति जिसके गर्भ से पौधा निकलता हुआ दर्शाया गया है, उसे मातृदेवी या उर्वरता कि देवी कहा गया है।
मेवी के अलावा मोहनजोदड़ो से प्राप्त से प्राप्त एक मुहर, जिस पर एक योगी, योग कि पदमासन मुद्रा में बैठा है और जिसके दाई ओर चीता और हाथी तथा बाई ओर गैंडा और भैंसा अंकित है, को पशुपति या रूद्र देवता कहा गया है। विशाल स्नानांगार का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान तथा सूर्य पूजा में होता रहा होगा। कालीबंगा से प्राप्त अग्निकुंड के साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि अग्नि, स्वास्तिक आदि की पूजा की जाती थी। ताबीजों की प्राप्ति के आधार पर जादू-टोने में विश्वास तथा कुछ मुहरों पर बलि प्रथा के दृश्य अंकन के आधार पर बलिप्रथा का भी अनुमान लगाया जाता है।
1. पूर्ण शवाधान:
पूरे शरीर को जमीन के अंदर दफना देना। यही सर्वाधिक प्रचलित तरीका था।
2. आंशिक शवाधान:
शरीर के कुछ भागों को नष्ट होने के बाद दफनाना।
3. कलश शवाधान: शव को जलाकर राख को कलश में रखकर दफनाना।
सैन्धवकालीन सामाजिक जीवन (Social Life of Indus Valley Civilization)
उत्त्खनन से मिली बड़ी संख्या में नारी मृण्मूर्तियां संकेत देती है कि संभवतः सैन्धव समाज मातृसत्तात्मक तथा सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था। हड़प्पावासी फैशन के प्रति जागरूक थे। आभूषण पुरुष भी पहनते थे, महिला पुरुष दोनों ही बड़े बाल रखते थे तथा बाल बनाने के असंख्य तरीके थे। महिलाएँ सिंदूर तथा लिपस्टिक का प्रयोग करती थी। सैन्धववासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का सेवन करते थे। गेंहू , जौ, चावल, तिल, सरसों, दाले, आदि प्रमुख खाद्य फसल थे। सैन्धववासी भेंड़, बकरी, सुँवर, मुर्गी तथा मछलियों का भी सेवन करते थे।
- सुझाव या त्रुटियों की सूचना के लिये यहां क्लिक करें।
data-matched-content-ui-type="image_card_stacked"
Useful Tips & Articles
तैयारी कैसे करें? |
EXAM SUBJECTS |
STUDY RESOURCESDownload Free eBooks |