अंग्रेजों की भारत विजय (बंगाल का अधिग्रहण, प्लासी का युद्ध व मीर कासिम और कंपनी)
आधुनिक भारत का इतिहास
अंग्रेजों की भारत विजय (British Conquest in India) : (भाग - १)
अंग्रेजों की भारत विजय के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों द्वारा मुख्यतः दो मत प्रस्तुत किये जाते है । प्रथम मतानुसार, यह विजय निरुद्देश्य आकस्मिक एवं अनभिप्रेरित थी। इस मत के प्रणेताओ का मुख्य तर्क यह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी, जो राजनितिक महत्त्वकांक्षाओ से बहुत दूर थी । इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार करना था । किन्तु संयोगवश यहाँ की राजनितिक परिस्तिथियों ने उन्हें भारतीय राजनितिक संघर्ष कि लिए प्रेरित किया । परिणामस्वरूप वे भारतीय राज्यों से युद्ध कर उनका विलय करने कि लिए बाध्य हो गए । उन्हें अपनी व्यापरिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती एवं अपने व्यक्तित्व हितों की सुरक्षा कि लिए भी यहाँ की क्षेत्रीय शक्तियों से युद्ध करना पड़ा ।
परिणामतः उन्होंने भारतीय साम्राज्य स्थापित कर लिया । दुसरे मतानुसार, अंग्रेजों द्वारा एक निश्चित एवं सुनियोजित योजना के तहत भारत का अधिग्रहण किया गया। इस मत के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि अंग्रेजों ने एक निश्चित योजना के अनुसार संगठित होकर एक व्यापारिक कम्पनी का गठन किया एवं उसके बाद भारत में प्रवेश किया । उन्होंने धीरे धीरे अपनी कूटनीति चालों का प्रयोग कर अपने राजनितिक अधिकारों में बढ़ोत्तरी कि तथा अपनी आक्रामक नीतियों से भारतियों राज्यों का अधिग्रहण कर लिया। इस प्रकार साम, दाम, दंड, भेद जैसी सभी नीतियों का प्रयोग करते हुए उन्होंने भारतीय साम्राज्य को हासिल कर लिया।
बंगाल का अधिग्रहण
अंग्रेजों द्वारा किया गया बंगाल का अधिग्रहण भारत में 18वी शताब्दी के उत्तरार्ध की ऐतिहासिक घटनाओं में प्रमुख है । केवल आठ वर्षों के अल्पकाल अथार्त 1757 से 1765 ई. के मध्य बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, मीरजाफर तथा मीर कासिम अपनी संप्रभुता को कायम रखने में असफल सिद्ध हुए । परिणामस्वरुप, बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी की संप्रभुता स्थापित हो गयी ।
ब्लैक होल की घटना (20 जून, 1756 ई.)
यह एक अंग्रेज अधिकारी जे. जेड. हालवेल द्वारा संभवतः मनगढंत व् ख्याति प्राप्त करने तथा अंग्रेजों की प्रति-हिंसात्मक क्रिया को बढ़ावा देने की लिए बनाई गई कहानी है । इसमें हालवेल ने बताया कि नवाब ने 20 जून की रात को 146 अंग्रेज कैदियों को 18 फुट लम्बी तथा 14 फुट 10 इंच चौड़ी कोठरी में बंद कर दिया । अगले दिन हालवेल सहित मात्र 23 व्यक्ति जिन्दा बचे। यह घटना इतिहास में 'ब्लैक होल' के नाम से प्रसिद्द है। यह घटना झूटी लगती है क्युकी इतनी छोटी कोठरी में इतने व्यक्ति को बंद करना संभव नहीं है । दुसरे समकालीन मुस्लिम इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक ' सियारूल मुत्खैरिन ' में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया ।
प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey )
प्लासी का युद्ध एक खुला युद्ध नहीं था, वरन यह एक विश्वासघात था क्युकी वर्तमान युग में क्रिकेट मैच फिक्सिंग की तरह इसके परिणाम पहले से ही निश्चित हो चुके थे ।भागीरथी नदी के किनारे आम्रकुंच में होने वाले इस युद्ध में नवाब के मुख्य सैनिक अधिकारी मीर बक्शी, मीर जाफर तथा रायदुर्लभ पहले से ही अंग्रेजों से मिल चुके थे । उन्हें बंगाल के कुछ महत्वपूर्ण व्यापारियों तथा बैंकरों का भी समर्थन प्राप्त था । इस युद्ध में नवाब की एक छोटी सी सेना ही मीरमदान तथा मोहनलाल के अधीन शामिल हुई, किन्तु यहाँ भी मीर बक्शी के द्वारा एक गलत रणनीति प्रस्तुत कर इस सेना को विवश कर दिया गया । अगर हम इस युद्ध में काम आए सैनिकों की संख्या पर गौर करते है तो हमें यह ज्ञात होता है कि नवाब कि पक्ष में 500 सैनिक मारे गए, जबकि ब्रिटिश की ओर से केवल 65 सैनिक ही हताहत हुए । अतः किसी भी तरह से यह खुला संघर्ष नहीं है ।
विश्लेषण करने पर ऐसा ज्ञात होता है कि कंपनी द्वारा व्यापारियों, बैंकरों तथा नवाब कि कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकारीयों की महत्त्वाकांक्षा को जगाकर अपने पक्ष में कर लिया गया । इन लोगो ने भी अपना भविष्य नवाब के बदले कंपनी कि साथ बेहतर रूप में पाया, किन्तु आगे आने वाली घटनाओ ने यह सिद्ध कर दिया कि यह स्वयं भी एक बड़े विश्वासघात के शिकार हुए । इस प्रकार हम देखते है कि प्लासी का युद्ध कोई बड़ा युद्ध नहीं बल्कि एक विश्वासघात था।
प्लासी का युद्ध (23 जून , 1757 ई.): प्लासी कि युद्ध को भारतीय इतिहास कि निर्णायक युद्धों में गिना जाता है क्योकि इसने आगामी दो सौ वर्षों कि लिए भारत की नियति को तय कर दिया था । 13 जून ,1757 ई. को क्लाइव ने अपने सैन्य अभियान की शुरुआत चंद्रनगर से की और शीघ्र ही पाल्सी पहुंच गया । क्लाइव की सेना में 1100 यूरोपियन, 200 भारतीय सिपाही और कुछ बंदूकची शामिल थे । वहीँ दूसरी तरफ नवाब की सेना में 50000 सिपाही थे जिनका नेतृत्व राजद्रोही मीरजाफर कर रहा था । इस सेना में अन्य षड्यंत्रकारी भी शामिल थे, यथा यारलतीफ खान और रायदुर्लभ ।
23 जून ,1757 ई. को क्लाइव एवं नवाब की सेना कि बीच युद्ध आरम्भ हुआ । मीरजाफर ने सिराजुद्दौला को को एक कपटपूर्ण परामर्श दिया और नवाब ने युद्ध को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया । अगले दिन हुए युद्ध में तीनो विश्वासघातियों की सेनाएँ बिना युद्ध किये ही वापस लौट गयी । इस युद्ध में नवाब के विश्वसनीय सैनिकों मीरमदान एवं मोहनलाल को वीरगति प्राप्त हुई । सिराजुद्दौला ने भागकर मुर्शिदाबाद में शरण ली, जहा मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी ।
प्लासी के युद्ध के परिणाम (Consequences of the Battle of Plassey)
प्लासी के युद्ध ने भारत में अंग्रेजों की स्तिथि को बहुत मजबूत बना दिया । इसमें मिली विजय ने अंग्रेजों को तात्कालिक सैनिक एवं वाणिज्यिक लाभ प्रदान किये । लॉर्ड क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का अगला नवाब बना दिया । मीरजाफर का नवाब बनना बंगाल के इतिहास में प्रथम क्रांति के रूप में जाना जाता है । नवाब के पद को प्राप्त करने के बदले उसे कम्पनी को भरी रकम चुकानी पड़ी थी । इसके साथ ही उसे बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा में मुक्त व्यापर करने का अधिकार भी देना पड़ा था । मीरजाफर ने लार्ड क्लाइव को 24 परगने की जमींदारी से पुरस्कृत किया । इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में शा्सक-निर्माता बन गयी ।
1760 की क्रांति (Revolution of 1760)
मीरजाफर के समय में क्लाइव और कंपनी की बढ़ती हुई माँगो के कारन नवाब की आर्थिक स्तिथि काफी कमजोर हो गई, जिससे उसे कई कठिन परिस्तिथियों का सामना करना पड़ा । मीरजाफर कंपनी की माँगो को पूरा करने में सफल नहीं रहा । परिणामस्वरूप 1760 ई. में कंपनी ने मीरजाफर पर डचों के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध षड़यंत्र रचने का आरोप लगाकर उसे नवाब के पद से अपदस्थ कर दिया । कंपनी ने मीरकासिम को बंगाल का नया नवाब बनाया ।
ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल का अधिग्रहण : प्रमुख घटनाएँ |
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अलीनगर की सन्धि |
क्लाइव और सिराजुद्दौला के बीच हुई इस संधि के अनुसार नवाब ने किलेबंदी की छूट, कैदियों के आदान प्रदान, उन्हें क्षतिपूर्ति देना विजित स्थानों को उन्हें लौटाने तथा सुरक्षा का वचन दिया। अंग्रेजों के विशेषाधिकार को भी नवाब ने स्वीकार किया ।
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काल कोठरी की घटना |
20 जून 1756 ई. को 146 अंग्रेज कैदियों को अँधेरी कोठरी में रात भर के लिए बंद कर दिया गया, जिसमे 123 व्यक्ति मारे गए । |
सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड़यंत्र में शामिल व्यक्ति |
कृष्णचन्द्र, जगतसेठ, अमीरचंद और मीरजाफर |
प्लासी का युद्ध : कारण |
कंपनी की व्यापारिक एवं राजनितिक महत्वकांक्षाए |
प्लासी का युद्ध : महत्व |
बंगाल में वह लूट प्रारम्भ हुई, जिसमे भारत के सबसे धनी प्रदेश को निर्धन बना दिया गया |
बक्सर का युद्ध : कारण |
सन 1762 में मीरकासिम ने भारतियों से व्यापारिक कर लेना बंद कर दिया और पटना में कुछ भारतियों और अंग्रेज बंदियों का क़त्ल कर दिया । |
बक्सर का युद्ध : महत्व |
राजनितिक दृष्टि से इस युद्ध में अंग्रेजों ने उत्तरी भारत के उस समय के सबसे शक्तिशाली प्रदेश पर कब्ज़ा कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था । |
दैध - शाशन प्रणाली |
सन 1765 -1772 ई. में शाशन को दो भागों में बांटकर (दीवान के रूप में बंगाल के राजस्व को सीधे वसूलना और नवाब सूबेदार को पुलिस और अन्य न्यायिक शक्तियों पर नियंत्रण ) विभिन्न शक्तियों के हाथो में देने के कारण दोहरा शाहन या दैध -शाशन कहा गया । |
मीर कासिम और कंपनी (Mir Kasim and Company)
मीर कासिम ने नवाब का पद प्राप्त करने के लिए कंपनी को कुल मिलकर 20 लाख रुपये की रकम अदा की । वर्दवान, मिदनापुर एवं चटगांव की जमींदारी भी कम्पनी को सौंप दी । मीर कासिम ने अपनी संप्रभुताको सुदृढ़ करने एवं अपनी वित्तीय स्तिथि को सुधरने के लिए अथक प्रयास किया । वह एक योग्य प्रशाशक एवं कुशल अधिकारी था । कंपनी के प्रभाव से दूर रखने के लिए वह अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले आया । उसने यूरोपीय मॉडल पर अपनी सेना का सुदृणीकरण किया तथा वित्तीय भ्रस्टाचार को समाप्त करने का भगीरथ प्रयास किया । मीर कासिम द्वारा नौकरशाही का पुनर्गठन किया गया तथा हस्ताक्षर के दुरुप्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास भी किया गया ।
इस सभी सुधारात्मक कार्यो के परिणामस्वरूप नवाब और कंपनी के संबंधों में तनाव आ गया । जिससे कंपनी को आक्रमक नीति अपनाने के लिए विवश होना पड़ा । बहरहाल सबसे महत्त्वपूर्ण अपनी कंपनी द्वारा नवाब के न्यायिक मामलो में हस्तक्षेप था । जिससे नवाब की संप्रभुता पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया । कंपनी के गुमाश्तों द्वारा जगह जगह न्यायिक कार्य किया जाने लगा था । इन सभी परिस्तिथियों के आलोक में नवाब द्वारा सन 1762 में एक क्रन्तिकारी निर्णय लिया गया । नवाब ने आंतरिक व्यापार पर लगे सभी करो को समाप्त कर दिया । फलतः अंग्रेजों के विशेषाधिकार समाप्त हो गए । अब सभी भारतीय एवं विदेशी व्यापारी एक ही स्तर पर आ गए जो की कंपनी को एकदम अस्वीकार था ।
परिणामस्वरूप जुलाई 1763 ई. में अंग्रेजों ने मीर कासिम के विरुद्ध औपचारिक युद्ध की घोषणा कर दी तथा मीर जाफर को बंगाल का अगला नवाब घोषित कर दिया ।
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